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Monday, 3 August 2020

Mere Sapne (Hindi Poem)

- Anuradha Agarwal

मेरे सपने

आंखें बन्द कर के मैंने देखे थे कुछ सुनहेरे सपने,
जो थे बस मेरे ही अपने,
पूरा करने उनको मै चल पड़ी,
पता नही रास्ते  में कब किससे कैसे लड़ी,
कभि हिम्मत टूटी,
कभि राहे रूठी,
पर मै फिर भी चली।

एक बार लगा की अब सब खत्म।
वापस ले लू मै अपने कदम।।

पर फिर बचपन की वह बात
जिसको सोच कर सोई नहीं थी मै कई रात -
बड़ी होकर मै यह बनूंगी।
सारी दुनिया मै अपना नाम करूंगी।
याद आई,
साथ अपने नया सवेरा लाई।

फिर से वह सपने वापस आए,
संग अपने कई नए रंग लाए।
अब मैंने ना मुड़ के पीछे देखा,
मिटा दी सारी मन की खीची हुई रेखा।

पूरा करने फिर से उनको चल पड़ी,
इस बार जीती मै क्योंकि खुद से ही लड़ी,
जो रोक रही थी मुझको धुंड ली वो कड़ी,
अब मै फिर एक नए जीवन मै उड़ने को चली।

- अनुराधा अग्रवाल

Sangharsh (Hindi Poem)

-Anuradha Agarwal

संघर्ष

जीवन का ज्ञान है
जनाब, कीमती हर एक जान है।

देखी थी मैंने आंखों से कुछ सच्चाई
जाने किसकी थी वो परछाईं।।

खाने को नहीं थी उनके पास रोटी
शायद किस्मत ही थी उनकी खोटी।

नींद थी आंखों में मगर सोने की जगह नहीं,
ख्वाब थे आंखों में मगर बोने की जगह नहीं
भीड़ से बचने के लिए कि एक कौशिश सही,
ढूंढने निकले थे अपनी मंजिल
जाने किस मोड़ पर जाएं मिल।

सपना था एक हसीन जिवन का
जाने कब खिलेगा फूल उसमें सृजन का ?
यही सोच कर .....
चले कुछ दूर और वो
तकलीफ है बस और दो।

पर था किस्मत को कुछ और ही मंजूर
क्योंकि रास्ते होते नहीं है आसान हुजूर
पर कुछ तो था उसके हाथो में जरुर
क्यूंकि उन्हीं की वजह से था जाने कितनों का गुरुर ।।

जिसने बनाई सबके लिए छत 
था आज उसी का बूरा वक्त,
यकिनन गया था वह बहुत थक
करने लगा अब वह खुदी पर सक

उसने भी ना मानी हार
लड़ने के लिए हो गया वह फिर तैयार
संघर्ष रखा जीने का अब भी बरकरार
पर उसे नहीं पता था मचा है हर तरफ हाहाकार
कुछ तो  इनकी भी सुनिए   सरकार
कहीं ज़िन्दगी से अब ये जाए हार
नहीं है इनकी जाने बेकार

पेट नहीं भरता है धर्म से
झुका लिजीए आंखे अपनी शर्म से
सोचते हैं वह भी जाने कैसे थे हमारे कर्म 
आखिर इस घाव का क्या है भी कोई मरहम

ऐसा जीवन जी कर तो देखिए
जनाब कुछ तो इनसे भी सिखिए 

गंदे नहीं होते हैं कोई भी धंधे
गलत होते हैं बस उनको करने वाले कुछ बंदे
काम करते हैं वो पर पढ़ते हैं उन्ही को डंडे
हार कर वह भी पढ़ जाते हैं ठंडे

भूल जाते हैं क्यू कुछ लोग 

सबका यहां अपना स्वभिमान है
जनाब किमती हर एक जान है
जिंदगी के अफसाने कभी कम ना होंगे
कभी आप भी ना होंगे कभी हम भी नहीं होंगे।

-अनुराधा अग्रवाल।